बच्चो से अगर पूछा जाये कि बड़े होकर क्या बनना चाहते हो? तो वह अपने मन के ख्वाहिस हो बयां करते हैं। लेकिन बेहद कम ही बच्चे ऐसे होते हैं जो बड़े होकर उस मुकाम को हासिल कर पाते हैं।  कक्षा 6 में पढ़ने वाले एक साधारण परिवार की किसान बेटी उर्वशी दुबे का आसमान में उड़ते विमान को देखने का सपना आज साकार हो गया है। कभी कच्चे घर में रहने वाली उर्वशी ने कई आर्थिक मुश्किलों का सामना किया था लेकिन आज उन सभी बाधाओं को पार कर कमर्शियल पायलट के तौर पर दुनिया में ऊंची उड़ान भर रही हैं। जानिए उर्वशी कि कहानी।

भरूच जिले के जम्बूसर तालुका के बाहरी इलाके में एक मिट्टी के घर में रहने वाली एक किसान की बेटी उर्वशी दुबे पायलट बनकर आपने घर आई। पायलट बनने के उसके बचपन के सपने का मजाक उड़ाने वाले लोग आज लड़की को बधाई दे रहे हैं। किमोज गांव के किसान अशोकभाई और मां नीलांबेन की बेटी उर्वशी कक्षा 6 में पढ़ रही थी जब उसने आसमान में एक हवाई जहाज को उड़ते देखा और उसके मन में एक सवाल उठा कि इस विमान का पायलट भी एक आदमी होगा और तभी से उसने ठान लिया कि बड़े होकर वह भी विमान उड़ाएगी।

चाचा पप्पू दुबे ने अपनी भतीजी को पायलट बनाने का खर्चा उठाया, लेकिन चाचा की कोरोना के कारण असामयिक मृत्यु के बाद, कई आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उर्वशी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही एक गुजराती स्कूल में प्राप्त की। जम्बूसर से वड़ोदरा, वहां से इंदौर, फिर दिल्ली और अंत में जमशेदपुर तक उर्वशी का पायलट बनने का सपना कमर्शियल पायलट के लाइसेंस के साथ साकार हो गया।  गांव के एक साधारण किसान परिवार से अपने वाली ओपन कास्ट, सरकारी कर्ज और निजी बैंकों की बेहिसाब दिक्कतों और एक घंटे की उड़ान के लिए हजारों रुपये और लाखों की फीस चुकाने के दिनों पर उसने दुःख व्यक्त किया। 

उर्वशी दूब बताती है कि पायलट बनना उनका बचपन का सपना था। पिता एक किसान है। पायलट बनना महंगा था, लेकिन उनके पिता ने उन्हें मना नहीं किया। यथासंभव मदद करने की बात कही। शिक्षकों और सीनियर्स की मदद से वे आगे बढ़ती गई। वे बताती है कि 12वीं साइंस में मैथ्स जरूरी है… मैं मैथ्स 12वीं साइंस से पास हुआ हूं। उसके बाद मैंने इंदौर में प्रवेश लिया। शुरुआत में मुझे भाषा की समस्या हुई, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी।