बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे अक्सर सुर्खियों में बने रहते थे। अपनी राजनीति के सफर में या फिर अपने ड्यूटी के दौरान अक्सर वह कोई ना कोई ऐसा काम जरूर करते थे जिससे वह सुर्खियों में छा जाते थे। गुप्तेश्वर पांडे मूल रूप से बक्सर जिले के गांव गेरुआ निवासी 1987 बैच के आइपीएस अधिकारी हैं। अपने 32 साल से अधिक की सेवा में उन्होंने बतौर एएसपी, एसपी, एसएसपी, डीआइजी, आइजी, एडीजी के रूप में बिहार के 26 जिलों में अपनी सर्विस दी है।

आपको बता दें कि गुप्तेश्वर पांडे का बचपन का की मुश्किलों से भरा हुआ था। उन्होंने 1986 में बिना किसी कोचिंग की मदद लिए पहले प्रयास में ही आईआरएस की परीक्षा पास कर दिखाई थी। लेकिन वह अपनी इस नौकरी से संतुष्ट नहीं थे इसलिए उन्होंने दोबारा यूपीएससी की परीक्षा दी। दूसरे प्रयास में गुप्तेश्वर पांडे को आईपीएस का पोस्ट मिला।
भोजपुरी माध्यम से पूरी की पढ़ाई-
1961 में जन्में गुप्तेश्वर पांडेय ने शुरुआती शिक्षा अपने गांव से ही हासिल की है। उस वक्त वहां आम जरूरतों को पूरा करने की सुविधाएं भी नाममात्र थीं। ऐसे में स्कूल, अस्पतालों के बारे में सोचना मुश्किल था, लेकिन फिर भी गुप्तेश्वर पांडेय ने सारी मुश्किलों को पार कर दूसरे गांव के विद्यालय में पढ़कर शिक्षा ग्रहण की है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार स्कूल के शिक्षक जहां चारपाई पर बैठते थे, वहीं शिष्य बोरा या जूट की टाट पर बैठकर पढ़ाई करते थे। पढ़ने का माध्यम भी ठेठ भोजपुरी था।
11वीं में हो चुके हैं फेल-
एक इंटरव्यू के दौरान गुप्तेश्वर पांडे ने कहा कि वह 11वीं की परीक्षा में फेल हो गए थे लेकिन वह हार नहीं माने। लगातार मेहनत और कोशिश के बदौलत उन्होंने यूपीएससी जैसी परीक्षा पास कर दिखाएं। गुप्तेश्वर पांडे की गिनती औसत दर्जे के छात्रों में होती थी और उन्हें केमिस्ट्री फिजिक्स से और इंग्लिश से बहुत डर लगता था।

स्ट्रिक्ट ऑफिसर के रूप में होती है पहचान: 2015 में शराबबंदी के फैसले के बाद चले कैंपेन के दौरान गुप्तेश्वर पांडेय जगह-जगह मुआयना करने गए थे। कई नक्सल इलाकों में पोस्टिंग के दौरान किए गए कार्यों को लेकर आज भी गुप्तेश्वर पांडे को वहां याद किया जाता है। अलग-अलग जिलों में हालातों को सुधारने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना हर कोई करता है। किसी भी दंगा-तनाव की सिचुएशन को संभालने में भी इनका कोई सानी नहीं है।