आज के समय में सभी लोगों की यह ख्वाहिश होती है कि वह मोटे आमदनी वाला काम या नौकरी करें जिससे वो अपने परिवार को सारी खुशियां दे सकें। इस बढ़ते महंगाई में ये आवश्यक भी है, क्योंकि जब तक आपके पास पैसे नहीं होंगे आप अपनी जिंदगी में खुश नहीं रह सकते।
हालांकि इस दौर में ऐसे लोग भी हैं जो प्रोफेशनल जॉब और प्रोफेशनल लाइफ छोड़कर खेती को अपने आमदनी का जरिया बना रहे हैं। वे अपनी खेती से यह सिद्ध कर दे रहें हैं कि आवश्यक नहीं कि उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनियों में जॉब कर पैसे कमाए जाएं बल्कि खेती से भी हम करोड़पति बन सकते हैं।
आज की हमारी यह कहानी एक ऐसी महिला की है, जो कभी आईटी (IT) प्रोफेशनल थी लेकिन आज वह खेती से जुड़कर करोड़ों रुपए कमा रही हैं। खेती में उन्होंने फसल के तौर पर मशरूम को चुना और आज वह अन्य लोगों के लिए उदाहरण बनी हैं। वह अपनी खेती से प्रत्येक वर्ष 1.5 करोड़ रुपए कमा रही हैं।

जॉब छोड़ लौटी गांव
हिरेशा वर्मा (Hiresha Varma) जो उत्तराखंड (Uttarakhand) के देहरादून (Dehradun) से नाता रखती हैं वह मशरूम की खेती कर सफलता की इबादत लिख रही हैं। वर्ष 2013 में जब केदारनाथ में बादल फटने से तबाही मची उस दौरान वह दिल्ली के एक आईटी कंपनी में जॉब कर रही थीं। जब उन्होंने यह देखा तो अपनी नौकरी छोड़ उत्तराखंड लौट आए ताकि वह लोगों की मदद कर सके। यहां उन्होंने एक एनजीओ के साथ मिलकर मदद का कार्य प्रारंभ किया।


आया मशरूम की खेती का आइडिया
जब वह लोगों की मदद कर रही थी तो उन्होंने देखा कि कैसे कई परिवार के सदस्य को इस काल ने निगल लिया है और उस परिवार का नाम-ओ-निशान तक बाकी नहीं है। बहुत से परिवार में बेटे और पति का पता नहीं बाकी सिर्फ महिलाएं हीं बची हैं। उन्होंने सोचा कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए मुझे कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए जो बेहद फायदेमंद हो। तब उन्हें यह आइडिया आया कि क्यों न मशरूम की खेती की जाए।

इस तरह हुई मशरूम की खेती प्रारंभ
उन्होंने बताया कि उत्तराखंड का जलवायु खेती के लिए सही नहीं होता और यहां आप पारंपरिक तौर पर खेती नहीं कर सकते परंतु आप मशरूम की फसल को बंद कमरे में तैयार कर सकते हैं। आपको इसमें अधिक पैसे की आवश्यकता नहीं है। अब उन्होंने बेसहारा महिलाओं से वार्तालाप किया और उनके खाली घरों में मशरूम की खेती ऑर्गेनिक तरीके से करनी प्रारंभ कर दी।

सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए है
वर्ष 2013 में उन्होंने सर्वेंट क्वार्टर में ऑयस्टर मशरूम के 25 बैग से मशरूम की खेती प्रारंभ की, जिसमें उन्हें 2000 रुपए खर्च हुए और लाभ के तौर पर 5000 रुपए प्राप्त हुए। जिससे उनका मनोबल बढ़ा और उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र देहरादून से मशरूम की खेती की ट्रेनिंग भी ली। अब वह अपनी इस खेती से प्रत्येक वर्ष लगभग 1.5 करोड़ रुपए का लाभ कमा रही हैं।

किया चुनौतियों का डंटकर सामना
उन्होंने अपने सफलता के रास्ते में आए चुनौतियों का सामना डंटकर किया और हार नहीं मानी। उन्होंने यह जानकारी दिया कि जब प्रतिदिन मुझे 20 किलोग्राम की उत्पाद मिलते जब मैंने इसकी शुरुआत की थी। परंतु आज वही मेरे गांव चरबा में आधुनिक उत्पादन उपकरणों और सुविधाओं से भड़ी एक फार्म है जिससे मुझे प्रतिदिन 1 टन मशरूम का उत्पादन प्राप्त होता है।
दिया लोगों को रोजगार, महिलाओं को दी ट्रेनिंग
आज वह अपने फार्म में लगभग 15 से भी ज़्यादा लोगों को रोजगार दे रही है। वहीं उन्होंने अब तक लगभग 2000 से भी ज्यादा महिलाओं को ट्रेनिंग भी दिया है। उन्होंने अपने खेतों में औषधीय प्रजाति के मशरूम जैसे गनोडर्मा एवं शिताके उगाया है। जिसे कैंसर की बीमारी में यूज किया जाता है इसमें भारी मात्रा में एवं एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं।
उनके खेतों में उगे मशरूम की प्रोटीन पाउडर, चाय, पापड़ अचार, कुकीज, सूप नगेट्स आदि तैयार किए जाते हैं और फिर इन उत्पादों की बिक्री होती है। उन्हें इस खेती में सफलता हासिल करने और अन्य लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों से कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।