होलिका दहन को लेकर आपके मन में कई सवाल चल रहे होंगे लेकिन परेशान होने की जरूरत नहीं है. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 7 मार्च को है, इसलिए होलिका दहन 7 मार्च को ही होगा. भद्रा काल का समय 6 मार्च को 4 बजकर 48 मिनट पर शुरू होगा और 7 मार्च को सुबह 5 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगा. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 07 मार्च को शाम 6 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.

भद्रा पक्ष में होलिका का विधानः होलिका दहन पर तीन शर्तों का पालन किया जाता है. पहला फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा हो, दूसरा रात का वक्त हो और तीसरा भद्रा नक्षत्र हो. ज्योतिषाचार्य डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार हिंदू मान्यता में भद्रा पक्ष में होलिका का विधान है. होलिका दहन के साथ कुछ परंपराएं भी जुड़ी हैं. ग्रमीण इलाकों में होलिका वाली आग में चने की झंगरी को पकाने की पौराणिक परंपरा है. इस झंगरी को होलिका दहन के प्रसाद के रूप में ग्रहन किया जाता है.

होलिका दहन की पूजन विधिः होलिका दहन के दिन होलीका पूजा के बाद जल अर्पित करना चाहिए. इसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार अपने घर के किसी बड़े बुजुर्ग से होलिका की आग जलवाएं. होलिका की अग्नी में फसल सेकें और इसे ग्रहण करें. होलिका दहन के दिन किया जाने वाले इस उपाय किसी भी व्यक्ति पर उसके जीवन में निराशा और दुख नहीं आता है. साथ ही परिवार के लोग खुशहाल रहते हैं. होलिका दहन की सामग्री में एक कटोरी पानी, गोबर के गोएठे से बनी माला, फल, फूल, मिठाई रोली, अगरबत्ती, कलावा, हल्दी का टुकड़ा मूंग दाल , बताशा गुलाल और नारियल होने चाहिए.

होलिका दहन से जुड़ी कहानीः होलिका दहन हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रह्लाद की कहानी से जुड़ा हुआ है. पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था और हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु का नाम लेना भी उचित नहीं समझाता था. जिस कारण वो प्रह्लाद को मारना चाहता था. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई और भगवान की महिमा से होलिका के शरीर से चादर हटाकर भक्त प्रह्लाद के शरीर पर गिर गई, जिससे भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई. होलिका ने भगवान को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर वरदान मांगा था, जो उसे ब्रह्माजी से मिला था, अगर वह चादर आग में डाल दे तो वह जलेगी नहीं. इस वजह से हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई और खुद जल गई.