आज आश्विन शुक्ल द्वितीया है यानी शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन। नवरात्र के नौ दिनों में मां जगदंबा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। पहले दिन मां शैलपुत्री का पूजन होता है। दूसरे दिन मां जगदंबा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का विधि-विधान पूर्वक पूजन का विधान है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का आशय हुआ तप का आचरण करने वाली। माता पार्वती भगवान शिवजी से विवाह हेतु प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण ब्रह्मचारिणी कहलाईं।

मां जगदंबा का ब्रह्मचारिणी स्वरूप काफी शांत, सौम्य और तेजोमय है। मां ब्रह्मचारिणी अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं। इनकी पूजा के दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है।

महत्व

मां ब्रह्मचारिणी व्यक्ति को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। माता ब्रह्मचारिणी की आराधना से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से धैर्य प्राप्त होता है और मनुष्य कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्त्तव्य पथ से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने कार्य में सदैव सफलता प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी संसार में ऊर्जा का प्रवाह करती हैं।

पूजन विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर जल्दी स्नान कर लें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें। इसके पश्चात घर के मंदिर में दीप प्रज्ज्वलित करें। फिर मां जगदंबा की प्रतिमा का गंगा जल से अभिषेक करें। माता को अर्घ्य दें। उन्हें अक्षत, सिन्दूर अर्पित करें। देवी ब्रह्मचारिणी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाने चाहिए. इन्हें मिश्री या सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं। फल अर्पित करें। इसके बाद मां की आरती करें।

मां ब्रह्माचारिणी की आराधना के मंत्र

दधांना कर पहाभ्यामक्षमाला कमण्डलम। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

ऊं भूर्भुवः स्वः ब्रह्मचारिणी। इहागच्छ इहतिष्ठ। ब्रह्मचारिण्यै नमः। ब्रह्मचारिणीमावाहयामि स्थापयामि नमः। पाद्यादिभिः पूजनम्बिधाय।।

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्। जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥

परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन। पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

माता ब्रह्मचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।

जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो।

ज्ञान सभी को सिखलाती हो।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।

जिसको जपे सकल संसारा।

जय गायत्री वेद की माता।

जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।

कमी कोई रहने न पाए।

कोई भी दुख सहने न पाए।

उसकी विरति रहे ठिकाने।

जो ​तेरी महिमा को जाने।

रुद्राक्ष की माला ले कर।

जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।

आलस छोड़ करे गुणगाना।

मां तुम उसको सुख पहुंचाना।

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।

पूर्ण करो सब मेरे काम।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी।

रखना लाज मेरी महतारी।