दिल्ली, 6 अगस्त। डॉ. विकास द्विव्यकीर्ति। वो शख्स जो कभी सेल्समैन बनकर दिल्ली में कैलकुलेटर बेचा करते थे। अपने भाई के साथ कभी प्रिंटिंग का काम किया करते थे। आज ये युवाओं को अफसर बना रहे हैं। UPSC की तैयारी करने वालों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। इनके पढ़ाने और समझाने का सरल, सहज और हल्का-फुल्का मजाकिया अंदाज ही इन्हें बाकी टीचरों से जुदा बनाता है। आईएएस-आईपीएस अफसर बनने की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी न केवल विकास द्विव्यकीर्ति के पढ़ाने के तौर-तरीकों बल्कि इनकी शख्सियत के भी मुरीद हैं, मगर इनकी निजी जिंदगी के बारे में बहुत कम अभ्यर्थी जानते हैं। अपनी निजी पूरी कहानी खुद विकास द्विव्यकीर्ति ने पहली बार किसी इंटरव्यू में बयां की है।

साल 1973 में जन्मे विकास दिव्यकीर्ति
मूलरूप से पंजाब के रहने वाले डॉ. विकास दिव्यकीर्ति कहते हैं कि इंटरनेट पर उनके बारे में कई जानकारी गलत है। मसलन उनका जन्म 1973 में हुआ ना कि साल 1976 में। इन्होंने साल 1996 में यूपीएससी का पहला अटेम्प्ट दिया था। 1976 में ही जन्मे होते तो 20 साल की उम्र में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में कैसे बैठते। उसके लिए तो कम से कम 21 साल जरूरी है। इनकी यूपीएससी जर्नी काफी रोचक रही है। ये नहीं चाहते थे कि कोई जाने कि ये यूपीएससी में भी भाग्य आजमा रहे हैं। 1996 में अपने पहले प्रयास में प्री पास करने के बाद मुख्य परीक्षा के लिए बंगलुरु का सेंटर चुना। दिल्ली से फ्लाइट में बंगलुरु जाते और परीक्षा देने के बाद वापस फ्लाइट से दिल्ली लौट आते और फिर मुखर्जी नगर की सड़कों पर घूमने लगते ताकि साथ वाले ये सोचे कि ये तो दिल्ली में घूम रहा है। यूपीएससी की परीक्षा नहीं दी होगी।
24 साल की उम्र में यूपीएससी अभ्यर्थियों को पढ़ाने लगे
दृष्टि आईएएस की स्थापना करने वाले डॉ. विकास दिव्यकीर्ति कहते हैं कि अपने पहले प्रयास में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बाद इन्हें वित्तीय संकट का सामना पड़ा। लोगों से काफी पैसे उधार ले रखे थे। ज्वाइनिंग से पहले उधारी वाले पैसे चुकाने के लिए इन्होंने साढ़े 24 साल की उम्र में साल 1998 में यूपीएससी अभ्यर्थियों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। इनके पिता हरियाणा के रोहतक में स्थित महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेज में हिंदी के अध्यापक रहे हैं। माता हरियाणा के भिवानी के एक स्कूल में हिंदी पढ़ाया करती थीं। विकास दिव्यकीर्ति समेत इनके दोनों भाइयों की शुरुआती पढ़ाई भी उसी स्कूल में हुई है।

राजनीति में सक्रिय रहे डॉ. दिव्यकीर्ति
भिवानी से स्कूल शिक्षा पूरी करने के बाद विकास दिव्यकीर्ति के पिता चाहते थे कि वे सीएम से भी बड़े नेता बनें। यही वजह में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े। प्रथम वर्ष की पढ़ाई पूरी होते-होते ऐसा संकट आया कि इन्होंने डीयू के स्टूडेंट यूनियन के चुनाव लड़ने से पीछे हटना पड़ा। अपने छात्र जीवन में डिबेट और कविता सरीखी चीजों में भी सक्रिय रहे। हिस्ट्री ऑनर्स का पहला साल खत्म हुआ, जिसके बाद सेल्समैन की नौकरी करने लगे। दिल्ली में कैल्कुलेटर बेचा करते थे, हालांकि इस काम में ज्यादा दिन उनका दिल न लगा और वह आगे बढ़ते हुए छोटे उद्यम की ओर बढ़े। डिबेटिंग से छिट-पुट खर्चा निकालते हुए उन्होंने भाई के साथ मिलकर प्रिंटिंग का काम चालू किया था। अपने स्कूल के दिनों में विकास दिव्यकीर्ति राजनीति में सक्रिय हो गए थे। समर्थ बाल संसद में चुनाव जीता करते थे। फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज से स्नातक करने पहुंचे तो उस समय (मंडल कमीशन को लेकर हुए आरक्षण के विरोधी आंदोलन में भी हिस्सा बने।
डॉ. विकास दिव्यकीर्ति की शिक्षा
डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने बीए (हिस्ट्री), एमए हिंदी, एमए सोशियोलॉजी, मास कम्युनिकेशन, एलएलबी, मैनेजमेंट आदि की पढ़ाई की। वो भी अंग्रेजी माध्यम से। जेआरएफ क्लियर किया। हिंदी में पीएचडी भी की। हालांकि ये नौवीं क्लास तक अंग्रेजी विषय में फेल हो जाया करते थे। पहले प्रयास में यूपीएससी पास करके गृह मंत्रालय की नौकरी की। कुछ समय बाद वह छोड़ डीयू के कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया। फिर आईएएस कोचिंग संस्थान दृष्टि की स्थापना की। डिबेट्स के लिए अलग-अलग कॉलेजों में जाया करते थे। उसी समय इन्हें अपनी जूनियर डॉ.तरुणा वर्मा से प्यार हो गया। दोनों ने साल 1997 में शादी कर ली।