पटना: नालंदा विश्वविद्यालय का अतीत गौरवशाली हुआ करता था। देश-विदेश से छात्र विश्वविद्यालय में पढ़ने आते थे। अब एक बार फिर से नालंदा विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय शिक्षण केंद्र के रूप में स्थापित किया जा चुका है। बड़ी तादाद में विदेशों से छात्र अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय (International Nalanda University) में पढ़ने पहुंच रहे हैं और उनके भविष्य उज्जवल हैं, लेकिन बिहार जैसे राज्य के छात्रों को कैरियर की चिंता सता रही है।

नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान:

प्राचीन भारत में नालंदा विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय पहचान थी। नालंदा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षण केंद्र में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य धर्मों और अनेक देशों के छात्र अध्ययन के लिए आते थे। अनेक अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि सातवीं शताब्दी में भारत के यात्रा पर आए हुए इंसान और इत्सिंग के यात्रा से नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।

प्राचीन समय में विश्वविद्यालय में पढ़ते थे दस हजार छात्र:

प्राचीन भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में 10000 छात्र पढ़ते थे और उनके लिए 2000 शिक्षक भी थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने सातवीं शताब्दी में यहां जीवन का महत्वपूर्ण 1 वर्ष विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। नालंदा को ज्ञान विज्ञान और शिक्षण केंद्र के रूप में सरकार ने विकसित करने की योजना बनाई और 25 नवंबर 2010 को नालंदा में अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।

विदेशों से ज्यादातर पढ़ने आते हैं छात्र:

नालंदा विश्वविद्यालय में आज भी उच्च शिक्षा के लिए छात्र नामांकन लेते हैं। विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म, वर्ल्ड लिटरेचर, इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट, एमबीए, सनातन स्टडी और हिस्टोरिकल स्टडी की पढ़ाई के लिए छात्र देश-विदेश से आते हैं। बिहार की रहने वाली अनुष्का नेवी इकोलॉजी एंड एनवायरमेंटल स्टडीज में सत्र 2020-22 में नामांकन लिया। अनुष्का 80 प्रतिशत अंकों के साथ पढ़ाई पूरी कर चुकी है। अनुष्का के बैच में कुल 25 बच्चे थे। जिसमें 20 विदेशों से थे। सबसे ज्यादा छात्र इंडोनेशिया से थे। वहीं, छह भूटान से थे। इसके अलावा मैक्सिको, कोलंबिया, श्रीलंका और बांग्लादेश के छात्र भी अध्ययनरत थे।

बिहार के छात्रों को प्लेसमेंट की चिंता:

विदेशों से अध्ययन के लिए आने वाले ज्यादातर छात्रों को या तो प्लेसमेंट मिल चुका है या फिर वह शोध के लिए इनरोल हो चुके हैं। चिंता बिहार जैसे राज्यों से आने वाले छात्रों को है कि अब वह आगे क्या करें। इकोलॉजी एंड एनवायरमेंटल स्टडीज में एमए की डिग्री लेने के बाद अनुष्का शोध करना चाहती है। ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अनुष्का ने कहा कि “कोरोना संकट और कोसी त्रासदी को लेकर मैंने काम किया है। अगर मुझे बेहतर अवसर मिले तो सकारात्मक नतीजे दे सकता हूं।फिलहाल मेरे सामने चुनौती यह है कि मैं शोध कहां से करूं और बिहार जैसे राज्यों के लिए कुछ करने के लिए रास्ते क्या है।”

“एमए की डिग्री बेटी ने हासिल तो कर ली लेकिन कोरोना संकट को देखते हुए विदेशों के अलावा बिहार जैसे राज्यों में रहने वाले छात्रों के समक्ष विकल्प सीमित है। सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि इनकी क्षमता का उपयोग राज्य के हित में कैसे किया जा सकता है।”- रश्मि, अनुष्का की मां