लोगों की जुबां पर आजकल ‘पुष्पा‘ शब्‍द खूब चढ़ा हुआ है। दक्षिण भारत की एक फिल्‍म ऐसी हिट हुई कि हर कोई उसके पुष्‍पा वाले डायलॉग बोलता दिख जाता है। ‘पुष्‍पा.. पुष्‍पा राज झुकेगा नहीं…’ फिल्‍म में तो रहा यह हीरो का नाम, लेकिन उत्‍तर भारत में ‘पुष्‍पा’ महिलाओं के नाम में इस्‍तेमाल होता है। आज हम उस महिला की सफलता की कहानी लेकर आपके समक्ष आए हैं, जिसका नाम ‘पुष्‍पा’ है।

वो फिल्‍मी नहीं, बल्कि असल जिंदगी की पुष्‍पा है.. जो बार-बार के नुकसान या रुकावटों से झुकी नहीं, बल्कि बहुत से लोगों की प्रेरणा बन गई। आज पूरे दरभंगा में उसकी तूती बोलती है…

फिल्मी नहीं, ये हैं असल जिंदगी की ‘पुष्पा’

बिहार के बलभद्रपुर गांव में रहने वाली पुष्पा-झा को पूरा दरभंगा जिला जानता है। पेशे से वह एक शिक्षिका थीं, वर्ष 2010 में उन्‍होंने मशरूम की खेती शुरू की थी। बहुत से लोगों को उनका यह काम पसंद नहीं आया, उन्‍हें ताने देते थे। यहां तक कि कुछ लोगों ने उन्‍हें प्रताडि़त भी किया, उनकी ठियां-ठौर में आग लगा दी। उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा। मगर, वह झुकी नहीं।

मिली शोहरत, जिद से हुईं मालामाल

पुष्पा के पति रमेश भी शिक्षक हैं। उनका कहना है कि, अब से 10-12 बरस पहले उनके इलाके में मशरूम की अहमियत को लोग नहीं जानते थे। मशरूम को कूड़ा-कचरा समझते थे। जब हमने कहा कि, इसकी सब्‍जी बन सकती है, अचार बन सकता है, चिप्स बन सकते हैं और भी बहुत काम का है, तो लोग पागल बोल देते थे। पुष्‍पा ने कहा, ‘किसी ने मेरे पति मशरूम की खेती करने के बारे में बताया था। जिसके बाद हमने समस्तीपुर के पूसा विश्वविद्यालय से मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेने का फैसला किया।’

अब यहां हर कोई मशरूम के लिए लालायित

‘जब मशरूम उगाना सीख गए, तो दिलचस्‍पी और बढ़ने लगी। हालांकि, शुरूआत के 4-5 साल अच्‍छे नहीं रहे। उसके बाद भी हमने ये काम नहीं छोड़ा। कुछ लोगों ने हमें नुकसान पहुंचाया। मगर..हमें अपनी मेहनत पर भरोसा था। इसलिए, हम हर साल दोगुनी रफ्तार से आगे बढ़े। आज हमारा उत्पाद स्थानीय बाजार के अलावा, बिहार के दूसरे जिलों में भी पहुंच रहा है। सच कहें तो अब मशरूम दरभंगा की एक पहचान बन चुका है।”

इससे आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा

पुष्पा से मशरूम की फॉर्मिंग की ट्रेनिंग लेने वाली औरत शांति ने कहा, ”इनकी कहानी बहुत प्रेरक है। पहले लोग इन्‍हें गंभीरता से नहीं लेते थे, अब हर कोई तारीफ करता है।’ उन्‍होंने कहा, ‘मैं एक महिला हूं और समाज में महिलाओं के हालत समझती हूं। मेरे मन में यह चल रहा है कि, पिछड़े इलाकों की ज्‍यादा से ज्‍यादा महिलाओं को मशरूम की खेती से जोड़ें…इस तरह उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा।’

सब्जी बेचने वाली महिलाओं को बेचा

मशरूम की खेती अब सालभर में आसानी से हो जाती है। पुष्पा कहती हैं, ‘जब हमने शुरूआत की थी, तो यह बहुत कठिन काम था। हमें मुनाफा नहीं और मेहनत बहुत हो रही थी। गर्मी के दिनों तो कतईं संभव नहीं था। जैसे एक दफा जून का महीना था..जिसमें गर्मी काफी तेज होती है। इसलिए हमने करीब 3 महीने इंतजार किया और सितंबर से फिर मशरूम की खेती शुरू कर दी। कुछ महीनों बाद ही हर दिन करीब 10 किलो मशरूम का उत्पादन होने लगा, जिसे 100 से 150 रुपये प्रति किलो की दर से बेचने लगे।’

अब थोड़ा-सा भी बर्बाद नहीं होता

उन्‍होंने कहा, ‘मशरूम से अब रोज हजारों रुपए कमाए जा सकते हैं। क्‍यों‍कि, इसके कई प्रोडक्‍ट आ गए हैं। जैसे इससे बिस्कुट, टोस्ट, चिप्स जैसी कई चीजें बनाई जाती हैं।’ उन्‍होंने कहा, ‘जो मशरूम बिक नहीं पाता, उसका अचार बनाया जा सकता है। इस तरह थोड़ा-सा भी बर्बाद नहीं होता। अब तो बिहार के लोग दिल्‍ली और बड़े-बड़े शहरों में मशरूम बेचते हैं। वहां लोग इसकी सब्‍जी चाव से खाते भी हैं। हमने पहले यह सब्‍जी वाली महिलाओं को बेचा।’

20 हजार से ज्‍यादा लोगों को दी सीख

बकौल पुष्‍पा, ‘बीते एक दशक में हम 20 हजार से ज्‍यादा लोगों को मशरूम की खेती के गुर सिखा चुके। बिहार के कई जिलों में अब बारिश के दिनों भारी मात्‍रा में मशरूम होता है। मैं सोचती हूं कि, जब हमारे इलाके कोई मशरूम के बारे में जानता नहीं था और हम, लोगों को मुफ्त में मशरूम दे देते थे। कहते थे, पहले खा कर तो देखिए और फिर लीजिए। कई लोग इसे जहरीला मानते थे और ही फेंक देते थे।’

मशरूम किसान पुष्पा झा’
अब मुझे कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा आमंत्रित किया जाता है। कहा जाता है कि मशरूम फॉर्मिंग की ट्रेनिंग दीजिए। इसी तरह बहुत से स्कूल-कॉलेज की लड़कियों से लेकर दरभंगा सेंट्रल जेल के कैदियों तक को ये काम सिखाया।’ वह कहती हैं, ‘मुझे यह अनुभव को दूसरों को बताने में तसल्‍ली मिलती है।’ वहीं, ‘मशरूम किसान पुष्पा झा’ अब एक ब्रांड बन चुका है।