मजदूर शब्द से आप सभी वाकिफ होंगे। अपनी रोजी-रोटी और जीविकोपार्जन हेतु अथक मेहनत की पराकाष्ठा करने वाला मजदूर संघर्ष का जीवंत उदाहरण होता है। अपनी कठिन मेहनत से खुद और अपने परिवार वालों को दो जून की रोटी मुहैया करवाने के अलावा उसके पास सामर्थ्य हीं कहां होता है कि वह कुछ अलग करने का सोंचे भी। लेकिन कहते हैं ना कि कठिन मेहनत से “पत्थर को भी पानी बना दिया जाता है”। आज बात एक ऐसे हीं शख्स की जिन्होंने मजदूरी करते हुए पढ़ाई जारी रखी और अंततः IAS अधिकारी बन सफलता की मिसाल पेश की। आईए जानते हैं उनकी संघर्ष से सफलता तक की कहानी…

बचपन का सफर बेहद संघर्षों भरा

एम. शिवागुरू प्रभाकरण (M. Shivaguru Prabhakaran) तमिलनाडु (Tamilnadu) के रहने वाले है। उनका बचपन बेहद हीं कठिन परिस्थितियों में गुजरा जिसमें उनके पास सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं था। पढ़ाई करनी तो दूर उनके पास रहने के लिए एक घर भी नहीं था जिसकी वजह से उन्हें प्लेटफार्म को हीं अपना आशियाना बनाना पङा। पिता को शराब की ऐसी लत थी कि उन्हें भूख से जूझना पड़ता था। यदि सुबह का लिए तो शाम में क्या खाएंगे इसका पता नहीं होता था।

मजदूरी कर अपनी पढ़ाई रखी जारी

बेहद गरीबी में जीते हुए भी प्रभाकरण के अंदर पढ़ाई के लिए लालसा कभी खत्म नहीं हुई और जैसे भी हालात हों उन्होंने पढ़ना नहीं छोड़ा। पिता की बेपरवाही के कारण बचपन में हीं उन्होंने घर की जिम्मेदारी उठा ली। पढ़ाई में वे बचपन से हीं उम्दा रहे और पढ़ाई पर फोकस बनाए रखा। जब वे उच्च शिक्षा के लिए तैयार हुए तो पैसे अधिक चाहिए थे इसलिए उन्हें मजबूरन अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। कभी खेतों में मजदूरी तो कभी आरा मशीन पर लकड़ी काटने तक का काम प्रभाकरन ने किया। ऐसे हालातों से गुजरने के बाद भी उन्होंने अपने सपने को मरने नहीं दिया।

परिवार के लिए बचपन से रहे संजीदा

प्रभाकरन बचपन से हीं अपने घर की हर ज़िम्मेदारी बखूबी निभाते रहे। अपने मेहनत के बल-बूते साल 2008 में अपने छोटे भाई को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाए। साथ हीं बहन की शादी भी करवाए। यह कुछ ऐसी ज़िम्मेदारियां थी जिसे पूरा किए बगैर प्रभाकरण अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान आकर्षित नहीं कर सकते थे।

इस तरह की आगे की पढाई

उनके सामने अब बस एक हीं सपना था वह है यूपीएससी की परीक्षा पास करना। उन्हें आईआईटी (IIT) में एडमिशन लेना था जिसके लिए उन्हें चेन्नई जा कर कोचिंग लेनी पड़ती, लेकिन इतने पैसों का इंतजाम कर पाना भी मुश्किल था। जब आप अपने लक्ष्य के प्रति अडिग होकर प्रयत्न करते हैं तो ईश्वर कोई ना की रास्ता अवश्य निकालते हैं। ऐसे हालात में प्रभाकरन को एक दोस्त के जरिए सेंट थॉमस माउंट के बारे में पता चला, जहां जरूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाया जाता है। प्रभाकरन फिर चेन्नई सेंट थॉमस माउंट में चले गए, वहां उन्हें एडमिशन तो मिल गई लेकिन किसी से कोई जान पहचान नहीं था। यहां तक कि उनके पास किराए का कमरा लेने के लिए पैसा भी नहीं था। इस कारण वह रेलवे प्लेटफॉर्म को ही अपना आश्रय बना लिए।

4 महीने तक लगातार स्टेशन पर रहने के बाद एक छात्र ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया और प्रभाकरन उसके साथ रहने लगे। वह अपनी विषम परिस्थितियों से कभी भी हार नहीं माने। चाहे जिस हालात में भी रहे कभी उनके कदम नहीं डगमगाए। उनकी यह मेहनत बेकार नहीं गई। उन्हें आईआईटी में नामांकन मिल गया। आगे प्रभाकरन बीटेक करने के बाद एमटेक में भी टॉप किए। इसके बाद उनके सामने एक ही लक्ष्य था UPSC की परीक्षा पास कर IAS ऑफिसर बनना। हलांकि वह दो बार परीक्षा में असफल रहे लेकिन उन्होंने अपने लक्ष्य को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने दिया और अपना प्रयास जारी रखा।

101वां रैंक प्राप्त कर पास की यूपीएससी की परीक्षा

असफलता, सफलता की पहली सीढ़ी मानी जाती है। प्रभाकरण भी इसी में विश्वास करते थे इसलिए उन्होंने विफलता से हार ना मानते हुए खुद को पहले से ज्यादा सुदृढ़ बनाया। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और वर्ष 2017 के बैच में 990 परीक्षार्थियों में प्रभाकरण 101 वां स्थान प्राप्त किए और यह सिद्ध किए कि आपके सामने चाहे कितनी भी विषम परिस्थितियां हो आप बिना हां माने अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार रहते हुए निरन्तरता से मेहनत करते रहें तो सफलता आपके कदम अवश्य चूमेगी।