हर साल लाखों लोग यूपीएससी परीक्षा देते हैं। जिसमें से चंद लोग ही पास हो पाते हैं। इस कठिन परीक्षा से एक से बढ़कर एक हीरा निकलता है। इनमें से एक हीरा निकलकर सामने आया है, जिसका नाम है- मनीराम शर्मा। जो आईएएस हैं। लेकिन आईएएस बनने की इनकी कहानी आसान नहीं है। यूपीएससी पास करने के बाद भी उनकी परेशानी कम नहीं हुई, क्योंकि परीक्षा पास करने के बावजूद उन्हें सिर्फ यह कहकर लौटा दिया जाता था कि वह बहरे हैं। मतलब यह कि- वह पूरी तरह से सुनने में असमर्थ हैं।

उन्होंने पहली बार 2005 में सिविल सेवा परीक्षा पास की, लेकिन संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने उन्हें बिना कोई सेवा आवंटित किए घर भेज दिया, ऐसा इसलिए क्योंकि वह 100 फीसदी बहरे थे। उनका कहना था कि 100 फीसदी विकलांग उम्मीदवार परीक्षा में बैठने के पात्र नहीं हैं, यह आंशिक विकलांगता के लिए है। मनीराम ने 2006 में फिर से परीक्षा दी और फिर से उन्होंने पास कर लिया। लेकिन इस परेशानी का सामना फिर से हुआ, यूपीएससी द्वारा फिर से उन्हें घर भेज दिया गया था।

मनीराम ने कहा कि- 5 साल की उम्र में मैंने सुनने की क्षमता खोना शुरु कर दिया था। 9 साल की उम्र आते-आते वह पूरी तरह से बहरे हो गए। “यह एक अनुवांशिक समस्या है। मेरी माँ, दादी और उनके परिवार के कई लोग बहरे थे। मेरे भाई-बहनों में मेरी दोनों बहनें बहरी हैं। केवल मेरा छोटा भाई ही सुन सकता है। उनके माता-पिता, दोनों अनपढ़ हैं और खेत में काम करके परिवार का गुजारा होता है। उन्होंने बताया कि परिवार किस तरह आर्थिक संकट से जूझ रहा है। धूप हो या बारिश 5 किलोमीटर का सफऱ करके स्कूल जाना पड़ता था। मैंने 12 वीं में राज्य स्तर पर अच्छा रैंक हासिल किया था। लेकिन मेरे माता-पिता के लिए ये रैंक कोई मायने नहीं रखता था, उन्हें सिर्फ पास या फेल पता था। माता-पिता चाहते थे कि नौकरी मिले। “मेरे गांव में नौकरी का विचार सीमित था-मास्टरजी, पटवारी, कंपाउंडर या फिर डॉक्टर।”


मनीराम सुन नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि नौकरी पाने का सबसे आसान तरीका शिक्षक बनना है। “वैसे भी, वह पहले से ही अपने गाँव के युवा छात्रों को कुछ पैसे कमाने के लिए पढ़ा रहा था।” एक सुन नहीं सकने वाले शिक्षक के लिए बच्चों को पढ़ाना काफी चुनौतीपूर्ण था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और इस मुसीबत का डटकर सामना किया। बच्चों को जो भी सवाल पूछना होता था वह लिखकर पूछते थे, फिर वह उनकी परेशानी को दूर करते थे। अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद, मनीराम ने राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) में प्रवेश किया, जहां वह अपने जीवन में पहली बार कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के संपर्क में आए। अब उनका सपना था आईएएस अधिकारी बनने का। कई लोगों ने उन्हें यह कहते हुए हतोत्साहित किया कि सिविल सेवाएं बधिर व्यक्तियों के लिए नहीं हैं। फिर भी, वह 1995 में यूपीएससी के लिए उपस्थित हुए, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा में भी असफल रहे।

एक बार तो एक अफसर ने ये तक कह दिया था कि आपका बेटा चपरासी तक बनने के लायक नहीं है। पिता का अपमान का बदला बेटे ने आईएएस बनकर लिया यूपीएससी परीक्षा पास करने के बाद उन्हें घर लौटा दिया गया था क्योंकि वह सुन नहीं सकते थे। जिसके लिए मनीराम ने अपनी जंग जारी रखी। मनीराम ने न केवल व्यक्तिगत लड़ाई जीती है, बल्कि उनके जैसे विकलांग व्यक्तियों के लिए एक मील का पत्थर जीत लिया है, जिन्हें प्रमुख सरकारी सेवा से दूर रखा गया है।

मनीराम की आईएएस गाथा 1995 में शुरू हुई जब वह प्रारंभिक परीक्षा को पास करने के अपने पहले प्रयास में असफल रहे। वह तब 100% बहरे थे। तब से उन्होंने तीन बार – 2005, 2006 और 2009 में परीक्षा पास की है। 2006 में, उन्हें बताया गया कि उन्हें आईएएस आवंटित नहीं किया जा सकता क्योंकि केवल आंशिक रूप से बधिर ही पात्र थे, उनके जैसे पूरी तरह से बधिर व्यक्ति नहीं। इसलिए, उन्हें पोस्ट और टेलीग्राफ खाते और वित्त सेवा आवंटित की गई।