Patna। बिहार में इस समय राज्यसभा चुनाव का बोलबाला है। इस चुनाव से आम जनता का कोई लेना-देना नहीं होता। खास ही चुनते हैं और खास ही चुने जाते हैं। बिहार में इस समय छह सीटों पर चुनाव होना है, जिसमें पांच का कार्यकाल छह साल का और एक का दो साल का है। छह साल वाली सीटों के लिए दस जून को चुनाव होना है और दो साल वाली का 30 मई को। माना जाता है कि इस चुनाव में न दल मायने रखता है और न कोई निष्ठा। ये सीटें धन से तुलती हैं और तब मिलती हैं। जिसकी थैली जितनी मोटी, उसकी सीट उतनी पक्की। चूंकि इस चुनाव में प्रदेश की सीमा कोई मायने नहीं रखती, इसलिए किसी भी प्रदेश का कोई भी प्रत्याशी किसी भी प्रदेश में प्रकट हो सकता है।

बिहार में जिन छह सीटों पर चुनाव होने हैं उसमें पांच पर सत्तारूढ़ भाजपा-जदयू व एक पर राजद का कब्जा है। लेकिन इस बार सदन में दलों का अंकगणित बदल जाने से सत्तारूढ़ को चार सीटें ही मिलनी हैं। जिसमें पांच साल वाली तीन व एक दो साल वाली है। दो साल वाली सीट इस पर काबिज जदयू के किंग महेंद्र (प्रचलित नाम) वैसे महेंद्र प्रसाद का कब्जा था। जिनके निधन के बाद यह सीट रिक्त हुई है। किंग महेंद्र, जैसा नाम वैसा ही जलवा। वे दवा की बड़ी कंपनी एरिस्टो के मालिक थे और धन से बेहद मजबूत। लगातार सात बार से वे राज्यसभा सदस्य थे। दल की सीमा उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी। कांग्रेस, राजद व जदयू इन सभी दलों से वे चुने जाते रहे। उनके निधन के बाद यह माना जाने लगा था कि रिक्त सीट उनके ही परिवार में से किसी को मिलेगी। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किंग के रिक्त स्थान पर चुना अपने एक कार्यकर्ता अनिल हेगड़े को।

बिहार में जिन छह सीटों पर चुनाव होने हैं उसमें पांच पर सत्तारूढ़ भाजपा-जदयू व एक पर राजद का कब्जा है। लेकिन इस बार सदन में दलों का अंकगणित बदल जाने से सत्तारूढ़ को चार सीटें ही मिलनी हैं। जिसमें पांच साल वाली तीन व एक दो साल वाली है। दो साल वाली सीट इस पर काबिज जदयू के किंग महेंद्र (प्रचलित नाम) वैसे महेंद्र प्रसाद का कब्जा था। जिनके निधन के बाद यह सीट रिक्त हुई है। किंग महेंद्र, जैसा नाम वैसा ही जलवा। वे दवा की बड़ी कंपनी एरिस्टो के मालिक थे और धन से बेहद मजबूत। लगातार सात बार से वे राज्यसभा सदस्य थे। दल की सीमा उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी। कांग्रेस, राजद व जदयू इन सभी दलों से वे चुने जाते रहे। उनके निधन के बाद यह माना जाने लगा था कि रिक्त सीट उनके ही परिवार में से किसी को मिलेगी। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किंग के रिक्त स्थान पर चुना अपने एक कार्यकर्ता अनिल हेगड़े को।

बहरहाल इस सीट के बाद अब जदयू के कोटे की एक सीट बची है और भाजपा की दो। जदयू की सीट वैसे तो केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) की है जिनका कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो रहा है। लेकिन अभी उनके नाम पर असमंजस है। कहा नहीं जा सकता कि वे जाएंगे या उनके स्थान पर कोई और। क्योंकि अंदरूनी तौर पर पार्टी में उनके नाम का विरोध चल रहा है। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ही नाम तय करेंगे और नीतीश कह रहे हैं कि समय आने पर उम्मीदवार तय किया जाएगा। इस समय ने आरसीपी की धड़कन बढ़ा दी है। हालांकि आशावादी अभी मान कर चल रहे हैं कि आरसीपी ही जदयू कोटे से जाएंगे और अगर जदयू उम्मीदवार नहीं बनाता है तो भाजपा उन्हें भेज देगी। उनका तर्क होता है कि भाजपा को भी प्रदेश में एक अदद कुर्मी नेता की तलाश है। ऐसे में नीतीश के अब तक के सबसे विश्वस्त सहयोगी रहे आरसीपी से बेहतर उसके लिए कौन होगा? चूंकि आरसीपी का गृह जिला भी वही नालंदा है जो नीतीश का है। समय आने पर वे कुर्मी वोटों के बंटवारे में अहम साबित होंगे।

इस चुनाव में भाजपा और राजद के पास दो-दो सीटें होंगी। भाजपा सीटें सतीश चंद्र दुबे व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल नारायण सिंह का कार्यकाल समाप्त होने से रिक्त हो रही हैं। दोनों सवर्ण हैं और अब भाजपा के सामने असमंजस है कि टिकट किस वर्ग को दे। अंदरखाने खबर यह है कि भाजपा की भेजी गई सूची में सवर्ण व पिछड़े दोनों वर्गो का जिक्र है। रही बात राजद की तो उसकी एक सीट मीसा भारती की है और वह उन्हीं को दी भी जाएगी, लेकिन एक सीट को लेकर मंथन जारी है। तमाम थैलीशाह भी घूम रहे हैं इस सीट के लिए। राजद के संसदीय बोर्ड ने लालू प्रसाद यादव को अधिकृत कर दिया है कि वे नाम तय करें। अब देखना होगा कि राजद घर में एक सीट देने के बाद बची दूसरी पर नीतीश की परिपाटी का अनुसरण करेगा या वही होगा जो होता आया है। बहरहाल कुछ दिनों में तय हो जाएगा कि कौन उच्च सदन जाएगा और किनके अरमान धूल धूसरित होंगे।